एक शख़्स (बापू)
एक शख़्स ,जिसकी शख़्सियत थीं एक। दुनिया में जिसकी तबीयत की कैफियत थीं एक।। जब चला था ,वो एक तन्हा मुतासिर। कुछ बरोज़ पे था वो हर दिल पे हाज़िर।। पूरा करके गया, अहद वो अकेला बन्दा। जबकि ताक़त की रोशनी में था सबसे अंधा ।। शख़्स था न वो, दुनिया में हर शख़्स से कुछ ख़ास। उसके फर्ज़ो से उठा दिल में उसकी हस्ती का एहसास।। सिखा के गया सबक, दुनिया में कुछ करके मिटने का। सिखा के गया सबक दुनिया में अपनी हस्ती याद रखने का।। कर ना पाया वो कुछ ,अपनी हस्ती के लिये।