मेरा स्कूल
मेरी पहली कविता मेरा स्कूल वो आम के पेड़ की छाँव वो मेरे छोटे छोटे पांव। वो पहले क्लास की एक नई सी आस अब कुछ कर जाने की बेहद है प्यास। वो मेले वो फंग्शन की यादें याद आते है दोस्तो से किये हुए वादे। वो झूला वो पटरी तुम्हारी जिस पर दौड़ती रहती थी रेलगाड़ी हमारी। वो झूपम झुपई के खेल वो दोस्तों का बस एक मेल। सीखने आये थे कुछ अक्षर यहां पे सीख के जाते सबक ज़िंदगी के। याद है तुमकों अबीहा, आज भी वों दिन करते थे हज़ार शैतानियां डरे किसी से बिन। अबीहा इन्तेख़ाब