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ज़ंग लगी हुई सोच

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 आज मम्मी सुबह से बोल रही थी अब्बो आज हास्पिटल चलना है आंटी से मिलने उनकी तबीयत खराब है देखने के लिये मैने कहा ठीक है मैं चलूंगीं हास्पिटल पहुचीं....जी मुझे पता है आप को मेरी रोज़ की ज़िन्दगी की कहानी सुनने का कोई शौक़ नहीं पर क्या करूं आज का दिन बहुत अलग था जिसने मुझे भीं परेशान कर दिया.....हास्पिटल पहुंचते ही मैने मम्मी से कहा आप चलिये मैं स्कूटी खड़ी करके आती हूं मम्मी चली गयी स्कूटी खड़ी करके मैं भी हास्पिटल के बरामदे में दाखि़ल हुई बहुत आराम से हाथ में स्कूटी की चाभी लिये सीढ़ियों की तरफ बढ़ रही थी.....तभी पीछे से मुझे किसे के चीख़ने की आवाज़ सुनाई दी मैने पीछे मुड़ कर देखा तो स्ट्रैचर पर कोई लेटा हुआ था और दो वार्डबाय जल्दी जल्दी उसे धक्का देते हुये ला रहे थे और उनके पीछे एक औरत जिनकी उम्र शायद पैतालिस या पचास के पास होगी दौड़ी चली आ रही थी आंसू लगातार बह रहे थे जैसे उनका सब कुछ बरबाद हो चुका हो इस बरबादी में भी उम्मीद की वो एक रेखा खिचती हुई बार बार कह रही थी कि कोई मेरी बेटी को बचा लो इस स्थिती को मैं देख ही रही थी,,, कुछ समझती उतने में वो स्ट्रैचर मेरे सामने से होता हुआ गुज़रा