ज़ंग लगी हुई सोच
आज मम्मी सुबह से बोल रही थी अब्बो आज हास्पिटल चलना है आंटी से मिलने उनकी तबीयत खराब है देखने के लिये मैने कहा ठीक है मैं चलूंगीं हास्पिटल पहुचीं....जी मुझे पता है आप को मेरी रोज़ की ज़िन्दगी की कहानी सुनने का कोई शौक़ नहीं पर क्या करूं आज का दिन बहुत अलग था जिसने मुझे भीं परेशान कर दिया.....हास्पिटल पहुंचते ही मैने मम्मी से कहा आप चलिये मैं स्कूटी खड़ी करके आती हूं मम्मी चली गयी स्कूटी खड़ी करके मैं भी हास्पिटल के बरामदे में दाखि़ल हुई बहुत आराम से हाथ में स्कूटी की चाभी लिये सीढ़ियों की तरफ बढ़ रही थी.....तभी पीछे से मुझे किसे के चीख़ने की आवाज़ सुनाई दी मैने पीछे मुड़ कर देखा तो स्ट्रैचर पर कोई लेटा हुआ था और दो वार्डबाय जल्दी जल्दी उसे धक्का देते हुये ला रहे थे और उनके पीछे एक औरत जिनकी उम्र शायद पैतालिस या पचास के पास होगी दौड़ी चली आ रही थी आंसू लगातार बह रहे थे जैसे उनका सब कुछ बरबाद हो चुका हो इस बरबादी में भी उम्मीद की वो एक रेखा खिचती हुई बार बार कह रही थी कि कोई मेरी बेटी को बचा लो इस स्थिती को मैं देख ही रही थी,,, कुछ समझती उतने में वो स्ट्रैचर मेरे सामने से होता हुआ गुज़रा मैने उस लड़की को देखा उसकी उम्र शायद छब्बीस से अठ्ठाईस बरस की होगी ... वो बहुत ज़्यादा जल चुकी थी... उसकी चीख़ बहुत हल्की हो गई ऐसा इसलिये नहीं हुआ कि उसका दर्द कम हो गया है ,,,बल्कि अब उसकी चीख़ भी धीरे धीरे उसकी चमड़ियों के साथ जल चुकी है हां शायद अब मैं उस स्थिती को समझ रही थीं पर फिर भीं मेरा पैमाना सच्चाई से बहुत दूर था या यूं कहिये मेरी सोच उसकी सच्चाई को छूं भी नही पायी तभी मेरे कानों मे कुछ शब्द पड़े .....दहेज के लिये मेरी बेटी को जला दिया मेरी दुनिया बरबाद कर दी......ये शब्द मेरे कानो में ऐसे लगे जैसे किसी ने सीसा पिघला के मेरे कानो मे डाल दिया हो....ऐसा नहीं है कि मैने दहेज जैसा शब्द या उसके उत्पीड़न से जुड़े मामलों को नहीं जाना हो सुबह जब तक मेरे हाथों में अखबार नहीं आता मुझे चैन नहीं मिलता रोज़ दहेज हत्या इससे जुड़ी हुई ख़बरे पढ़ती हूं पर वों खबरे हाथ में काफी के कप के साथ सोफे पर बैठ कर टिप्पणी करने के लिये ही सही लगती थीं,,,
हां दोस्तों से इस विषय को लेकर कई बार चर्चा हुई जो सिर्फ कैन्टीन में ही शुरू हो कर वहीं खत्म हो जाती और यदि यह विषय बहुत लम्बा चला तो स्कूल या कालेज की वाद विवाद प्रतियोगिता या फिर निबंध प्रतियोगिता तक ही अपनी मंज़िल पा कर सफल हो जाता,,, पर आज उन ख़बरों की वास्तविक घटना का एक हिस्सा मेरे सामने घटित हो रहा था.....मेरे पैर न जाने क्यों आगे चले और बर्न वार्ड के सामने चले गये मेरे क़दम अंदर जा ही रहे थे तभी एक आवाज़ आयी अब्बो वहां कहां जा रही हो मम्मी बोली बेटा तुमको बोला था न सीधे ऊपर चली आना यहां क्या कर रही हो मैने मम्मी से बोला मम्मी एक लड़की को दहेज के लिये जला दिया गया मम्मी थोड़ी देर चुप रही और,,,,, बोलीं यही समाज की सच्चाई है.... चलो तुमको बोला था न सीधे ऊपर चली आना चलो यहां से.... मैं रास्ते भर सोचती रही कि ये कौन सा समाज है जहां एक ग़लत रिवाज को सही बना दिया गया है मुझे तो समाज की ये सोच ही समझ में नहीं आती बेटी पैदा हुई तो....बेटी पैदा हुई है... फिर अपने बेटों की शादी के लिये बेटिंया चाहिए......फिर शुरू होता है असली व्यापार......ज़ंग लगी सोच है भारतीय समाज की...................
हां दोस्तों से इस विषय को लेकर कई बार चर्चा हुई जो सिर्फ कैन्टीन में ही शुरू हो कर वहीं खत्म हो जाती और यदि यह विषय बहुत लम्बा चला तो स्कूल या कालेज की वाद विवाद प्रतियोगिता या फिर निबंध प्रतियोगिता तक ही अपनी मंज़िल पा कर सफल हो जाता,,, पर आज उन ख़बरों की वास्तविक घटना का एक हिस्सा मेरे सामने घटित हो रहा था.....मेरे पैर न जाने क्यों आगे चले और बर्न वार्ड के सामने चले गये मेरे क़दम अंदर जा ही रहे थे तभी एक आवाज़ आयी अब्बो वहां कहां जा रही हो मम्मी बोली बेटा तुमको बोला था न सीधे ऊपर चली आना यहां क्या कर रही हो मैने मम्मी से बोला मम्मी एक लड़की को दहेज के लिये जला दिया गया मम्मी थोड़ी देर चुप रही और,,,,, बोलीं यही समाज की सच्चाई है.... चलो तुमको बोला था न सीधे ऊपर चली आना चलो यहां से.... मैं रास्ते भर सोचती रही कि ये कौन सा समाज है जहां एक ग़लत रिवाज को सही बना दिया गया है मुझे तो समाज की ये सोच ही समझ में नहीं आती बेटी पैदा हुई तो....बेटी पैदा हुई है... फिर अपने बेटों की शादी के लिये बेटिंया चाहिए......फिर शुरू होता है असली व्यापार......ज़ंग लगी सोच है भारतीय समाज की...................
अबीहा इ्न्तेख़ाब
Very good, you right on our society keep right abiha
ReplyDeleteIt made me emotional....very well done dear Abiha ..keep writing ...its a true face of our Society.
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteWell done abhiha 👍🏻
ReplyDelete👍👍👍👍
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteएक सच 👌 nice,,, लेकिन इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार कौन है??? ..😑.. मैं इसका answer ढूढ़ रही,..🙏
ReplyDeleteआज का युवा है इसका ज़िम्मेदार...क्यूंकि...एक युवा ख़ुशी ख़ुशी दहेज लेता है (दूल्हा) दूसरा ख़ुशी ख़ुशी दहेज ले जाता है (दुल्हन) मैंने तो बहुत से ऐसे युवा (दुल्हनों) को देखा है जिन्होंने बहुत हक़ से माँ बाप से दहेज मांगें है और फिर इस समाज ने उसे तोहफओं का नाम दे दिया....
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