भारत की दूसरी आज़ादी के स्वतंत्रता सेनानी


भारत की दूसरी आज़ादी के स्वतंत्रता सेनानी

क्या लिखूं इस दौर में अब तो अन्दर का लेखक भीं मर चुका है, पर क्या करुं लिखना तो पड़ेगा ही अपनी क़लम को इस दौर की जागी हुई उम्मीदों का सहारा देकर आगे बढ़ाती हूं, हम सब जानते है आज के इन हालतों को पर शायद हमारा और आप का देखने का नज़रिया अलग होगा, या यूं कहिये एक जैसा भीं हो सकता है। सब सही चल रहा था ,हम अपने देश के कई तरह राजनीतिक मुद्दो में उलछे पड़े थे रोज की वहीं बहस चाहें वो बड़े शहर के शीशे के होटलों में शीशे की चाय से छलक्ती वों प्यालियां, चाहे वो गांव के फूंस के चौपालों में मिट्टी की चाय से छलक्ती वों प्यालियां चीजे भले ही दोनो जगह अलग हो पर दो चीज़े एक ही थी पहली चाय और दूसरी हमारी राजनीतिक बहस हम इसी में उलछे थें। दुनिया में उस समय एक अलग ही जंग चल रहीं थी ये कोई जनवरी की बात थी दुनिया नये साल के जशन में डूबी हुई थी शायद कहीं, उस जंग का बिगुल बज चुका था पर हम क्या पूरा विश्व ही इससे अनजान था। भारत भी पूरी दुनिया की तरह इस साल नई ऊचांईयों के सपने देख रहा था, पर शायद कुदरत ने कुछ और ही सपने देखे थे इस मानवजाति के लिये पर कुदरत के सपने हमारे सपनों के मुकाबले ज्यादा तेजी से पूरे होने लगे पर एक सवाल उठता है क्या कुदरत ये सपना तय कर चुकीं थी या हमने मजबूर किया था इस सवाल का उत्तर मैं आप पर छोड़ती हूं, चलिये फिर, सपने तो सब जान ही चुके है। अब उस सपने के परिणाम की बात करते है परिणाम के रुप में जंग का मैदान तैयार था कुदरत हमारे सामने थी और हम यानि मानवजाति जो हमेशा इस भ्रम में रहते थे कि हम कुदरत से भीं लड़ सकते है इस जंग मे हमारी असलियत सामने आ गई। कुदरत तो तैयारी से आई थी, पर हमारे पास कोई हथियार हीं नहीं थे तो फिर, हमने इससे बचने के बारे में सोचा क्योंकि हमारे पास इसके एलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

आप शायद मेरे इन शब्दों में उलछ गये होंगे, क्या करूं मरा हुआ लेखक क़लम नामक आक्सीजन पाकर फिर जिंदा होने लगा, तो इसे मार देते है और सीधी सीधी बात करते है। ये कुदरत जो इस समय एक भयानक नोवेल कोरोना के रूप में हमारे सामने आई है हम इससे लड़ नहीं सकते है ,ये हम जानते है और विश्व के हालात भीं हम अच्छे से जानते है, इसलिये इस समय भारत केवल दूसरे देशों से सबक ही सीख सकता है ,इस जंग से बचने का और पहला सबक है। घरों में ही रहिये मैं ये नहीं कहूंगी कि आप घरों में रहेगे तो आप समाज बचा सकते है, अपना देश बचा सकते है। बल्कि आप अपनें बच्चों को अपनी आने वाली पीढ़ी को बचा सकते है, उनके सपने बचा सकते है। क्योंकि आप ये जरूर सोचते होंगे कि मैंने जो भीं जिंदगी अपनी जी है ,मेरे बच्चे उससे काफी अच्छी जिंदगी गुज़ारे पर वो तभीं होगा जब आप उनके आने वाले भविष्य को अपने आज के कुछ त्याग से सवांर सकते है। मैं जानती हूं आप समझदार है पर, फिर भीं मैं ऐसा इसलिये कह रहीं हूं ताकि आप इसे अच्छे से समझे जिससे भारत की भावी पीढ़ी जिसके लिये हम सब सपना देखते है कि, वो न केवल भारत का नाम रौशन करें बल्कि विश्व में अपनीं स्थिति सुनिश्चित करें, वों गर्व से यह कह सके कि हमारे पुर्वजों ने काफी समझदारी दिखाई जैसे आज हम लोग ये कहते है कि हर स्वतंत्रता सेनानी चाहे वो किसी भी धर्म का हो हमारी नज़रों मे काफी सम्मान रखता है। इसी तरह इस आपदा से आज़ादी के आंदोलन में भाग ले कर हम भीं अपनीं आने वाली पीढ़ी की नज़रों मे अपनी इज्ज़त बना सकते है, इसलिये यह एक मौक़ा है आप सब के पास चाहे आप किसी भीं धर्म के हों सरकार का सहयोग करे और सारे दिशा निर्देशों का पालन करें और खुद भीं हीरों बने और दूसरों को बनने के लिये प्रेरित करें।................................पता हैं इतनें बिन्दू मैंने क्यों लगाये क्योंकि शायद मैं आप की मनोस्थिति समझ रहीं हूं आप कहेगें कि लेखिका जी लिखना काफी आसान होता पर उस स्थिति से लड़ना काफी मुशकिल होता है,क्योंकि हम घर में रह लेगें इसलिये नहीं कि आप कह रहीं है या फिर हम अपने बच्चो या भारत की आने वाली पीढ़ियों कि नज़रों मे इज्जत पाना चाहते है। एक बात और लेखिका साहिबा उन स्वतंत्रता सेनानियों ने भीं भारत को आज़ाद इसलिये नहीं करवाया था, कि वह भविष्य में इज्ज़त पा सकें वो तो सिर्फ भारत से प्यार करते थे और हम भीं करते है, हम भीं भारत को इस मुसीबत से निकालना चाहते है। पर क्या करें जीने के लिये भीं कुछ जरूरते होती है।.................क्यों यही चल रहा हैं न आप के दिलों दिम़ाग में तो बस मैं ज्यादा नहीं कहना चाहूंगी जंग चाहे किसी भीं दौर कि हो चाहे आज की है ,या आज़ादी की थी। आसान कोई भीं नहीं होती,अगर आप चाह लेतो आप को मिसाल बनने से कोई हालत नहीं रोक सकता इसलिये एक बार फिर कहती हूं, घरों मे रहे सरकार का साथ दे। हां एक बात और आप के और हमारे दिमाग में एक बात तो जरूर आती होगीं कि काश हम पहले विश्व युद्ध या फिर दूसरे विश्व युद्ध के समय या जब देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ था तब या जब हम आज़ाद होने की दहलीज़ पर ख़ड़े थे तब काश हम होते तो कुछ ऐसा करते जिससे हमे अपने आप पर गर्व होता तो आज मौक़ा है,हमारे पास उस समय से तो यह मौक़ा सस्ता ही है ।



                         सिर्फ घरों में रहें,                                                                            

                                और

                          मिसाल बनें।

                                                                     अबीहा इन्तेख़ाब
















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