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Showing posts from April, 2020

एक दिया तू भीं जला

  एक दिया तू भीं जला उस घनघोर रात में, उस पथ के अंधकार में, अपने अंदर के मानव को जगा एक दिया तू भीं जला।। जंग के इस बंद मैदान में, बिना किसी खुले हथियार के, अपने अंदर के इस डर को भगा एक दिया तू भीं जला।। शहर में, गांव में, डगमगाते उन पांव में, मर रहा है जो बिना किसी भाव में, उन मज़दूरों का मोल   बढ़ा एक दिया तू भीं जला।। इन वीरों के इतने बड़े त्याग में, इनकी महानता के दुर्लभ प्यार में, इस प्यार पर तू रंग चढ़ा एक दिया तू भीं जला।।                                                                                                   अबीहा इन्तेख़ाब

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी वो आज मुझे देख के कहते है ,कि तू अब इंसान नहीं  उन्हें पता है, अब शायद पहले जैसे मेरे हालात नहीं।।  फिर भीं चले आते हैं, मुझे बदनाम करने के लिये मेरा बचा हुआ किरदार, तबाह करने के लिये।। वो जानते हैं, मेरी बरबादी में कुछ उनके भीं निशां है गुनाह कि उस तड़प से ,शायद वों भीं अब परेशां है।। खत्म कर दिया, मैनें हाले जिन्दगी अब किसी को सुनाना क्योंकि बन चुका है ये अब काफी पुराना फंसाना।।                                                                          अबीहा इन्तेख़ाब                                                 

वक्त के पांव कितनी तेजी से बढ़ते है।,,,,,,,,,,,,,,,,पर पीछे के निशान साथ ले कर चलते है।

वक्त के पांव कितनी तेजी से बढ़ते है।,,,,,,,,,,,,,,,,पर पीछे के निशान साथ ले कर चलते है। क्या लगता है आपको कि वक्त के पांव सच में तेजी से बढ़ते है शायद आपकों को भीं ये सच लगता है क्या कहा हाँ , सच कहा चलिए तो इस वक्त की रफ्तार को किसी लड़की की जिन्दगीं से जोड कर चलते है जिसे मै जानती हू आप नहीं , पर जान जायेगे वक्त आपको समझा देगा , अभी लगता है जैसे कुछ दिनों पहले कि ही बात है मेरे घर के पड़ोस में एक प्यारी से बच्ची का जन्म हुआ रंग उजला हुआ जैसे चाँदनी की सारी ललिमा लपेट कर धरती पर आयी कोई सुंदरी आँखे इतनी बड़ी जैसे समुन्द्र की सारी जहाज़े उसमे खो जाये गरदन हिरनी जैसी होठ जैसे गुलाबों की रानी ने आपना बलिदान दे कर उसके होठो पर रक्त छिड़का हो उसकी सुंदरता देखकर पहला शब्द उसकी दादी के मुँह से निकला मैनें सुना लड़की हुई जब ये शब्द उनके मुहं से निकला तो मानो ऐसा लगा जैसे उनकी कोई बरसो की तपस्या का फल भगवान ने उनके लाख तप जाप करने के बाद नहीं दिया। पिता की बड़ी बड़ी आंखो ने जब उनके तरफ देखा तो उन्हें ऐसा लगा जैसे उन्होने गलत शब्दो का जाल बिछाया फिर वो नजरे नीची करके मानो जैसे

भारत की दूसरी आज़ादी के स्वतंत्रता सेनानी

भारत की दूसरी आज़ादी के स्वतंत्रता सेनानी क्या लिखूं इस दौर में अब तो अन्दर का लेखक भीं मर चुका है, पर क्या करुं लिखना तो पड़ेगा ही अपनी क़लम को इस दौर की जागी हुई उम्मीदों का सहारा देकर आगे बढ़ाती हूं, हम सब जानते है आज के इन हालतों को पर शायद हमारा और आप का देखने का नज़रिया अलग होगा, या यूं कहिये एक जैसा भीं हो सकता है। सब सही चल रहा था ,हम अपने देश के कई तरह राजनीतिक मुद्दो में उलछे पड़े थे रोज की वहीं बहस चाहें वो बड़े शहर के शीशे के होटलों में शीशे की चाय से छलक्ती वों प्यालियां, चाहे वो गांव के फूंस के चौपालों में मिट्टी की चाय से छलक्ती वों प्यालियां चीजे भले ही दोनो जगह अलग हो पर दो चीज़े एक ही थी पहली चाय और दूसरी हमारी राजनीतिक बहस हम इसी में उलछे थें। दुनिया में उस समय एक अलग ही जंग चल रहीं थी ये कोई जनवरी की बात थी दुनिया नये साल के जशन में डूबी हुई थी शायद कहीं, उस जंग का बिगुल बज चुका था पर हम क्या पूरा विश्व ही इससे अनजान था। भारत भी पूरी दुनिया की तरह इस साल नई ऊचांईयों के सपने देख रहा था, पर शायद कुदरत ने कुछ और ही सपने देखे थे इस मानवजाति के लिये पर कु